मेला

कक्षा-4; 
विषय-हमारा परिवेश;
पाठ-10; 
मेला  
तर्ज-मेरे सामने वाली खिडक़ी में 

भारत है त्योहारों का देश, यहाँ नित-नित मेला लगता है।
बच्चे, बूढ़े या युवा वर्ग, ये सबको अच्छा लगता है।
मेले में सजी दुकानें हैं, यहाँ के ठाठ निराले हैं।
कुछ लोग खरीदें सामग्री, कुछ लोग टहलने वाले हैं।
मिट्टी से बना सुन्दर-सुन्दर, हाथी घोड़ा भी बिकता है।
भारत है त्योहारों ......................
गुब्बारे की चिड़िया बिकती और गदा पूँछ वाला बन्दर।
चाभी वाली गाड़ी बिकती, बिकते प्लास्टिक के सुन्दर घर।
रोहन, रीना, सोहन ले लो, देखो ये अच्छा लगता है।
भारत है त्योहारों ...................
दलजीत को भाये मिट्टी के, रीना को भी भाये मिट्टी के।
प्लास्टिक के खिलौने ना भाये, प्लास्टिक मिट्टी में ना गलते।
प्लास्टिक से बने सामानों का प्रयोग कम अच्छा रहता है।
भारत है त्योहारों ......................
गोलगप्पे, आलू की टिकिया और चाट भी बिकते खुले-खुले।
इतनी सुन्दर खुशबू आए और खाने को है जी मचले।
पर खुली हुई चीजें खाना, बीमार हमें कर देता है।
भारत है त्योहारों .......................
मेले में हाथ पकड़ के रहो, जाओ तो सभी ना अलग रहो।
सर्कस देखो, जादू देखो, घूमो कितना पर साथ रहो।
छोटे बच्चों के बिछड़ने का, मेले में भय बना रहता है।
भारत है त्योहारों का .................
       
रचयिता
अरविन्द कुमार सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धवकलगंज, 
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-वाराणसी।




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