अनुबंध हो गये विस्मृत

पहले..................
खानदान हुआ करते थे।
आज केवल ..........
मकान हुआ करते हैं।।

उसमें बस एक
चिड़ा-चिड़ी हैं रहते।
साथ में उनके
एक या दो छोटे चूजे।।

अब रीति-रिवाजों को
नहीं ढोती कोई संस्कृति।
अब पूर्वजों की शेष है
 नहीं कोई अनुकृति।।

सुख-दुःख के संदेशे 
कोने-कोने से थे आते।
परिजन कभी मुरझाते
कभी थे हर्षाते।।

पन्द्रह दिन श्राद्ध के
कोई न मना पाता था।
हर वर्ष खानदान में कोई
नया आता, पुराना कोई जाता था।।

चाचा-मामा के रिश्ते
हम बिसराने लगे।
आज हम नये जमाने
 के कहलाने लगे।।

निःसंदेह ज्ञान-विज्ञान से
हम आगे हैं बढ़ते।
किन्तु मानवीय संवेदनाओं की
 अनुभूति अब नहीं करते।।

वक्त की आँधी में
अनुबंध हो गये विस्मृत।
स्वार्थ के आड़ में
सम्बन्ध हो गये सीमित।।

रचयिता
शालिनी श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय दवोपुर,
विकास खण्ड-देवकली, 
जनपद-गाज़ीपुर।

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