वो बचपन के दिन

वो बचपन के दिन
बहुत याद आती है
जो खेला करते थे
लुका-छुपी का खेल,

वो सभी एहसास
बहुत याद आती है
जो एक क्षण रुठ के
साथ खेलते थे खेल,

न मन में छल-कपट
न मन में देर तक बैर
बातों-बातों में रुठना
पल में ही पालना मैल,

वो सब किस्से-कहानी
बहुत ही याद आती है
जो सुनाते थे नाना-नानी
बाघ-बिल्लियों की झेल।
                   
रचयिता
चैतन्य कुमार,
सहायक शिक्षक,
मध्य विद्यालय तीरा,
ग्राम+पत्रालय:- तीरा खारदह,
प्रखण्ड:- सिकटी,
भाया:- कुर्साकाँटा,
जिला:- अररिया,
राज्य:- बिहार।

Comments

Total Pageviews