विश्वास का दीपक जला दूँ

रह न जाए तम निशानी,
विश्वास का दीपक जला दूँ।
आस विघटित शून्य मन हो,
भाव नव फिर से जगा दूँ।
तोड़ दूँ बंधन सभी अब,
सुन रहा क्रन्दन तुम्हारा
व्यथा के भार अनगिन,
करुण उर यह हमारा।
उर अतल से नव्य स्वर को,
      आज अपने मैं मिला दूँ।
     विश्वास का दीपक जला दूँ।
तुम नहीं निरुपाय होना,
व्यर्थ के दुख हैं न रोना।
स्वर्ण पथ वह तो मिलेगा,
चन्द्र ज्योतित नव मिलेगा।
नवल रवि अंशु अभिनव
            बोल दो मैं उगा दूँ।
       विश्वास का दीपक जला दूँ।
भावना की बाती बनाकर,
आत्म में ज्योतित जलाकर।
आलोक अन्तर में बढ़ाने,
दीप सी दीवाली मनाने।
कहो तो तुम सुरभि बन,
           नेह का अमृत पिला दूँ।
    विश्वास का दीपक जला दूँ।
       मधुमास नूतन मैं खिला दूँ,
         बाँटती सीमाएँ मिटा दूँ।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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