बेटी

जब से तू परिवार में आई,
घर में रौनक आई है।
अंश मेरा तू, गर्व मेरा तू,
तू मेरी परछाईं है।
आज मैं सब से कह डालूँगी,
बेटी नहीं पराई है।।
तू है मेरे भाल की बिंदिया,
तू है मेरे नैन की निंदिया,
खो ना जाए, टूट ना जाए,
तू है मेरी काँच की गुड़िया,
दुनिया से बच आगे बढ़ना,
सीख यही  सिखलाई है।
आज मैं सब से कह डालूँगी,
बेटी नहीं पराई है।।
फूल नहीं जो मुरझा जाए,
शूल न बनना जो चुभ जाए,
न इतनी कमजोर तू बनना,
छीन कोई मुझसे ले जाए,
चढ़ने बड़े पहाड़ हैं तुझको,
अभी तो यह अंगड़ाई है।
आज मैं सब से कह डालूँगी,
बेटी नहीं पराई है।।
क्यों चिराग है बेटा घर का,
बेटी बोझ कहाती है,
दोनों में पर अंतर क्या है,
बात समझ न आती है।
बेटे से ना कम है बेटी,
अब लड़नी यही लड़ाई है।
आज मैं सब से कह डालूँगी
बेटी नहीं पराई है।।

रचयिता
पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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