ओ लक्ष्मी माँ

दीनों को - हीनों को, धन से विहीनों को, मिल जाए माँ का सहारा
भरी जेबें वो खाली, मन जाए दीवाली, ना कर तू उनसे किनारा।।
लक्ष्मी माँ।। ओ लक्ष्मी माँ।।
जो कल से भूखे हैं, पतझड़ से सूखे हैंहरदम ही हैं बेसहारा।
भर जेबें वो खाली, मन जाए दीवाली, ना कर तू उनसे किनारा।
ओ लक्ष्मी माँ।। लक्ष्मी माँ।।
मिट्टी की मूरत से, जिंदा जरूरत से, किसने उन्हें है संवारा।
भर जेबें वो खाली, मन जाए दीवाली, ना कर तू उनसे किनारा।।
लक्ष्मी माँ।। ओ लक्ष्मी माँ।।
सूरज की गर्मी में, पत्तों की नरमी में, जीवन जिन्होंने गुजारा।
भर जेबें वो खाली, मन जाए दीवाली, ना कर तू उनसे किनारा।।
लक्ष्मी माँ।। ओ लक्ष्मी माँ।।
दर्दीली रातों में, दिया ले हाथों में, तुम को हृदय से पुकारा।।
भर जेबें वो खाली, मन जाए दीवाली, ना कर तू उनसे किनारा।।
लक्ष्मी माँ।। ओ लक्ष्मी माँ।।
दीनों को हीनों को, धन से विहीनों को, मिल जाए माँ का सहारा।।
भर जेबें में वो खाली मन जाए दीवाली, ना कर तू उनसे किनारा।।
लक्ष्मी माँ।। ओलक्ष्मी माँ।।       

रचयिता
पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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