सरिता का शीतल नीर

हर गृहणी को लक्ष्मी जानो,
और समझो उसकी भी पीर।
उसको अविरल ही बहने दो,
ज्यों सरिता का शीतल नीर।।

उसके भावों को पहचानो,
मत उस पर बंदूकें तानो।
मत देना देवी का दर्जा,
पर उसको औरत तो मानो।।

उसकी महानता पहचानो,
हो जाओ तुम कुछ गंभीर।
उसको अविरल ही बहने दो,
ज्यों सरिता का शीतल नीर।।

सबको संकट से वह तारे,
उसके काम जगत से न्यारे।
पर जब राक्षस कोई आये,
दुर्गा बन उसको संहारे।।

दुष्टों को वह घातक विष है,
और अपनों को मीठी खीर।
उसको अविरल ही बहने दो,
ज्यों सरिता का शीतल नीर।।

अन्नपूर्णा उसको मानो,
वह है ममता का भण्डार,
मान बड़ों को देती है वह,
और बच्चों को देती प्यार।।

जो देखे वो पीर पराई
हृदय से होती बहुत अधीर।
उसको अविरल ही बहने दो,
ज्यों सरिता का शीतल नीर।।

रचयिता
प्रदीप कुमार चौहान,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल कलाई,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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