लड़की बनकर जीना चाहती हूँ

कुछ इस तरह वजूद में रहना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

१) बंद पिंजरे में नहीं
खुले आसमां में उड़ना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

२) केवल हिमालय में नहीं
प्रशान्त में भी अपना अक्स देखना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

३) केवल सोना नहीं
इक नायाब हीरा बन जाना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

४) अपने माँ-बाप का ही नहीं
मैं अपनी मिट्टी का कर्ज चुकाना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

५) कोख में नहीं
बस इक बार
बस इक बार इस दुनिया में आना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

६) अपने हौंसलों को पंख कुछ यूँ लगाना चाहती हूँ।
मैं इक बेटी होने का सारा धर्म निभाना चाहती हूँ।।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

७) पढ़ना चाहती हूँ
मैं लिखना चाहती हूँ।
केवल जग में नहीं
लोगों के दिलो में बस जाना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

अन्त में बस
यही सन्देश पहुँचाना चाहती हूँ।
मैं लड़का नहीं
लड़की बनकर जीना चाहती हूँ।।

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

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