टपका का डर

कक्षा २ 
पाठ ५ 
टपका का डर

बरसात का मौसम ऐसा आया।
चारों तरफ संग पानी लाया।।

घर जो भीगे दादी माँ का।
कोना टपके हर एक झाँ का।।

टूटा छप्पर ऐसा पाया।
टप-टप करके पानी आया।।

बेर बराबर ओला आया।
दादी का माथा ठनकाया।।

ओलों ने जो मार मचाई।
उछले कूदे बाघ भाई।।

कूद फाँदकर घर तक पहुँचे।
आड़ से छिपकर ऐसा सोचे।।

दादी माँ थीं भात बनायें।
पानी देखकर वो खिसियायें।।

अन्त में बोली मुझको गर है।
बाघ नहीं टपका का डर है।।

बेशक टपका बड़ा जानवर।
तभी नहीं मेरा इतना डर।।

इतना सोच बाघ घबराये।
झटपट करके दौड़ लगाये।।

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

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