महर्षि वाल्मीकि

सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग में
 उल्लेख मिलता है वाल्मीकि नाम।
रामचरितमानस अनुसार वाल्मीकि 
आश्रम आ दण्डवत प्रणाम किये राम।
पांडव जब युद्ध जीते कौरव से
द्रोपदी ने चाहा हो  यज्ञ में शंखनाद।
 कृष्ण सहित सब महारथी प्रयासरत
तनिक भी  बजा ना पाये शंखनाद।
कृष्ण के अनुरोध पर प्रकट हुए वाल्मीकि
वाल्मीकि देख स्वयं बज उठे शंखनाद।
द्रौपदी संग सब पांडव झूम उठे
जब सुना यज्ञ मे शुभ शंखनाद।
 दीमक बांबी बना ली देह  पर
इस कारण वाल्मिकी नाम पड़ा।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिख
इतिहास मे बड़ा महाकाव्य गड़ा।
आश्विन माह की पूर्णिमा जन्म लिया
 माता चर्षणी-पिता प्रचेता की संतान।
 भील चुरा ले गया बचपन में, वन में
 वहाँ लुटेरा डाकू रत्नाकर  पड़ा नाम।
खगोल विद्या, ज्योतिष शास्त्र के
 प्रकांड पंडित महर्षि वाल्मीकि  महान।
शिकारी परिधि ने जब प्रेमालाप मग्न
क्रौंच पक्षी पर जब प्राणाघात किया।
यह दुष्टकृत्य देख महर्षि वाल्मिकी ने
ब्रह्मा की प्रेरणा से पहला श्लोक लिखा।
वैदिक जगत का प्रथम महाकाव्य
रामायण ही रच  डाला ।
 चौबीस हजार श्लोक संस्कृत में
लिख नया इतिहास रच डाला।
माता सीता को दिया आश्रय आश्रम में
लव कुश को दिया अस्त्र-शस्त्र ज्ञान।
डाकू रत्नाकर से जीवन परिवर्तन
हो बने महर्षि बाल्मीकि महान।
इच्छाशक्ति ,अटल निश्चय का सुंदर
मिश्रण है महर्षि बाल्मीकि जीवन।
बुरे कर्म त्यागे, बढ़े सत्य कर्म की ओर
भक्ति- भाव  राह  प्रेरणादाई  जीवन।
 पाप कर्म लिप्त, परिवर्तन हृदय हुआ
 राम-राम- मरा - मरा जपते  ज्ञान प्राप्त  हुआ।

रचयिता
प्रेमलता सजवाण,
सहायक अध्यापक,
रा.पू.मा.वि.झुटाया,
विकास खण्ड-कालसी,
जनपद-देहरादून,
उत्तराखण्ड।

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