सँवारेंगे प्रतिभा ये संकल्प अपना

हमने ठाना, चमन है सजाना।
ये नन्हें सितारे, बहुत हैं ये न्यारे।
आशा से भर पास आए हमारे।
इनको राहें दिखाना,
मनुजता भी सिखाना।
हमने ठाना, चमन है सजाना।
हर एक माँ का है प्यारा,
वो है पिता का दुलारा।
घर का दीपक है,
और है नैनों का तारा।
सुशिक्षित बनाना, मन को जगाना।
हमने ठाना, चमन है सजाना।
मोहन है आया, सपने वो लाया,
कलम कापी भी संग में लाया।
लकीरों को सिखाना,
बात हर है बताना।
हमने ठाना, चमन है सजाना।
नई खोज करने, नया रूप गढ़ने,
कल्पनाओं के पर भी सँवरने।
सृजन की दिशा का
पता भी बताना।
हमने ठाना, चमन है सजाना।
चन्द्रगुप्त कोई यहाँ पर अभी है,
चाणक्य आता वो मिलता तभी है।
चाणक्य सा बन उसे खोज लाना,
हमने ठाना, चमन ये सजाना।
हम न डरते, किरण ज्ञान भरते,
स्नेह अनुराग से नये दीप जलते।
हमें तो सभी को पढ़ाना,
फूल नूतन हमें है खिलाना।
हमने ठाना,चमन ये सजाना।
सँवारेंगे प्रतिभा ये संकल्प अपना,
देखा है हमने चमकता वो सपना।
वायदा है खुद का,
उसे है निभाना।
हमने ठाना, चमन ये सजाना।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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