कृष्ण जन्म की आस

जन मानस यह सोच रहा है, रामराज्य फिर आएगा।
कृष्ण जन्म बेला पर फिर से, हरि नर रूप में आएगा।
चरम पे कलियुग पँहुच गया है, द्वापर फिर कब आएगा,
द्रौपदी की फ़िर लाज बचाने, कौन कन्हइया आएगा.....

हर दिन, हर पल, तिल- तिल कर, स्त्री अपमानित होती है,
पुरुष प्रधान समाज में, हर क्षण नारी तिरस्कृत होती है,
बहू, बेटी, बहना का फ़िर, सम्मान कौन लौटाएगा,
द्रौपदी की फ़िर लाज बचाने, कौन कन्हइया आएगा.....

नन्ही, युवा, प्रौढ़, सुकुमारी, नहीं सुरक्षित जग में हैं,
कोमल, सुंदर, सौम्य, दुधमुंही भी अब डरी-डरी सी है,
इनके भय को दूर भगाने, कौन सभ्य नर आएगा,
द्रौपदी की फ़िर लाज बचाने, कौन कन्हइया आएगा.....

कौरव रूपी राक्षसों से, मानवजाति डरी सी है,
मित्रता, नैतिकता, मानवता, चरित्र से अब लोप सी है,
युद्ध भूमि में अर्जुन को, गाण्डीव अब कौन थमाएगा,
द्रौपदी की फ़िर लाज बचाने, कौन कन्हइया आएगा.....

कंस, पूतना, कालिया, जैसों से जग सारा त्रस्त सा है,
रिश्ते, नाते, संगी-साथी, सम्पूर्ण जगत मतलब का है
मित्र गरीब सुदामा के बन, मैत्री अब कौन निभाएगा,
द्रौपदी की फ़िर लाज बचाने, कौन कन्हइया आएगा....

कृष्ण जन्म बेला पर फिर से, हरि नर रूप में आएगा।
चरम पे कलियुग पँहुच गया है, द्वापर फिर कब आएगा,
द्रौपदी की फ़िर लाज बचाने, कौन कन्हइया आएगा.....

रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।

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