जवाब

देखकर सपने डोर से ही तुम,
              काश्मीर की धरती पे लोगे।

तमन्ना न पूरी होगी कभी,
              कितना भी जोर लगालोगे।

देख रहा हिमालय पर्वत,
                अपनी बाँहें फैलाकर।

कितनी भी कोशिश कर लो,
                भागोगे मुँह की खाकर।

हम अहिंसा में यकीन करते हैं,
                आदर स्वागत सब करते हैं।

इसका मतलब यह नहीं,
               कि हम किसी से डरते हैं।

स्वागत सत्कार होगा सब,
             मेहमान बनकर जो आओगे।

पीठ पीछे वार करोगे जो,
             हमेशा ही मुँह की खाओगे।

छोटा भाई समझ तुमको पर,
             तुमने ये क्या सिला दिया।

चोरी-छिपकर हम पर ही,
             पीछे से तुमने वार किया।

है हिम्मत अगर तो चोरी छिपके,
              सीमा पर घुसना छोड़ दो।

रण के मैदान-ए-जंग में,
               पीठ दिखाना छोड़ दो।

है नहीं अगर औकात तुम्हारी,
             काश्मीर का ख्वाब छोड़ दो ।

वक़्त है अभी भी सुधर जाओ,
              वरना पीछे पछताओगे।

हुए जो क्रोधित भारतवासी हम,
           खुद को नक्शे में नहीं पाओगे।

रचनाकार
मनीष कुमार वर्मा,                  
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय ताड़ी,
विकास क्षेत्र-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।

Comments

Total Pageviews