पेड़ ही इनके रक्षक हैं

सूरज के उगने से पहले
प्रात:  वह जग जाती है
देर तलक सोना नहीं अच्छा
आकर हमें सिखाती है

भोर भए  कलरव करने
आ बैठ मुंडेर पे जाती है
चीं चीं कर वह सुबह सवेरे
आकर हमें जगाती हैं

अपने महल का शिल्प वह गढ़ती
चुन चुन तिनका लाती है
जोड़ जोड़ कर हर तिनके को
घोंसला अपना सजाती है

पेड़ों के कम हो जाने से
घर में भी आ जाती है
एक रोज़ कट पंखे से
मृत्यु उसकी हो जाती है

मन  मेरा व्यथित हो  उठता
'हिय' विषाद से भर जाता है
इन अनबोले जीवों पर क्यों
हमें तरस नहीं आता है

इनकी सुरक्षा धर्म हमारा
पेड़  ही  इनके  रक्षक हैं
वो ही हैं इनका घर बाहर
दरख़्त  इनका जीवन हैं

आओ करें मिलकर हम तुम प्रण
पेड़ों को नहीं काटेंगे
रोकथाम कर इन पेड़ों की
हम हरियाली बाँटेंगे

'ममता' से पौधे पालेंगे
गौरैया  को बचा  लेंगे
दिन दिन इनसे नेह बढ़ाकर
जीवन  अपना  सजा लेंगे!!

रचयिता
श्रीमती ममता जयंत,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चौड़ा सहादतपुर, 
विकास खण्ड-बिसरख, 
जनपद-गौतमबुद्धनगर।

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