मनवाँ लगे सतरंगी

पंद्रह अगस्त के दिनवां क मिलल आज अवसर,
आवा याद कर ले नेहरू आजाद भगत सिंह जी के  कुर्बानी।
बड़ी बहादुरी से
 सब लड़ले बहादुर,
बड़े संघर्ष से मिल ल आजादी।
बड़ा याद आवे  आज सुभाष और गांधी।।

तीन रंग क रँगवा उड़े असमनवां।
त मनवाँ लगे सतरंगी।।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
मील-जुल देश के तरक्की में  लगी गइले,
अमीरी गरीबी क खाई पटी गइले।।
चहुँओर भाईचारा से दिल मिल गईले,
बाबा साहब राजेन्द्र बाबू का चलल संबिधनवा
त मनवाँ लगे सतरंगी।।

खेतवा में धनवां  लगल लहलहाए,
देखी-देखी हरषे किशनवां।
सीमवां पर झाँकेला जब दुशमनवां,
दागेला तोपवा वीर जवनवां।।
कारगिल चोटियां पर लहरे तिरँगवां,
त मनवाँ लगे सतरंगी।।

जबसे तीन सौ सत्तर खत्म होई गइल,
सगरो पत्थरबज्वन क मरण परी गइल,
धरती के स्वर्ग में छवलिस हरियाली।
देशवां  में चारो तरफ खुशहाली।
देसवां क दुश्मन गइल भकुवाईल
त मनवाँ लगे सतरंगी।।

रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,  
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।

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