मैं पेड़ नहीं लगाऊँगा

       कक्षा में वृक्षारोपण का टॉपिक पढ़ाया जा रहा था। सतीश और पुष्पा बोर्ड पर "पेड़ लगाओ साँसें बचाओ"
का सन्देश देता हुआ चित्र बना रहे थे। शिक्षिका द्वारा बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण और उससे होने वाली हानियों के बारे में बताया जा रहा था। शिक्षिका ने बताया कि धरती को प्रदूषण से बचाने का एक मात्र उपाय है "अधिक से अधिक पेड़ लगाना"। इसलिए सब बच्चे संकल्प करो कि सब एक-एक पेड़ जरूर लगाना।
         तभी पीछे की बेंच से आवाज आयी "नहीं हम पेड़ नहीं लगाएँगे"। शिक्षिका और सब बच्चों ने पीछे मुड़कर देखा। सभी अवाक रह गए क्योंकि बच्चे चाहे पेड़ न लगाएँ पर अभी तक यह किसी ने नहीं कहा था कि हम पेड़ नहीं लगाएँगे। देखा तो गोलू क्रोधित सा खड़ा था और उसी ने यह बोला था। शिक्षिका ने उसे अपने पास बुलाया तो वह डरा सहमा सा आकर चुपचाप खडा हो गया। उससे पूछा तो वह कुछ नहीं बोला। तब शिक्षिका ने उसके सिर पर हाथ फेरा और प्यार व अपनेपन से पूछा तो वह अचानक फूट-फूट कर रोने लगा।
        जब वह कुछ शांत हुआ तो उसने बताया कि उसके घर के सामने चार पेड़ लगे हुए थे। हम अपने मित्रों के साथ उन्हीं पेड़ों के नीचे खेला करते थे। उनमें एक बरगद का पेड़ भी था जो बहुत बड़ा था। जब हम लुका छिपी या आँख मिचौली खेलते थे तो उसी के पीछे छुप जाते थे। उसकी लटकती हुई जड़ों को पकड़कर खूब झूला करते थे। अपनी नन्हीं बाँहों का घेरा बनाकर उसकी मोटाई नापा करते थे। तब बड़ी ख़ुशी होती थी मानो हम अपने प्रिय मित्र को गले लगा रहे हों। हाँ वह बरगद का पेड़ मेरा प्रिय मित्र ही तो था।
       पर एक दिन हाइवे बनाने वाले आये और उन्होंने वह चारों पेड़ काट दिए। तीन पेड़ जो छोटे छोटे थे आसानी से कट गए पर मेरा "नन्दन" यही तो नाम रखा था मैंने अपने प्रिय बरगद के पेड़ का। मशीन से भी नहीं कटा। तब बड़ी मशीन मँगाई गयी और उसे टुकड़े-टुकड़े करके काटा गया। हर प्रहार के साथ उसके हर अंग से कुछ दूध की बूँदें टपक जातीं। मानो वह कष्ट से रो रहा हो। मैं असहाय वहीं खड़ा अपने मित्र को तिल-तिल मरते देखता रहा और चाहकर भी उसे नहीं बचा पाया।
        उस दिन मैं अपनी माँ से लिपटकर बहुत रोया। माँ ने समझाया कि "पेड़ तो होते ही कटने के लिये हैं। जब उस तरफ वाली सड़क बनी थी तब भी कई पेड़ों को काटा गया था। अब सड़कें बनाने के लिये लोगों के मकान व दुकान टूट रहे हैं तो इन पेड़ों की कौन सुन रहा है। भले ही ये पेड़ हमें जीने के लिए शुद्ध वायु देते हों। आदमी के विकास के लिए सड़कें बनाना जरूरी जो हो गया है"। 
        "पर कोई बात नहीं हम दूसरे पेड़ लगा लेंगे" माँ ने फिर कहा।
        मैंने माँ से भी यही कहा "मुझे पेड़ नहीं लगाना है"। गोलू ने आक्रोशित होकर कहा ।
       शिक्षिका ने समझाकर कहा कि "पर बेटा पेड़ लगाना बहुत जरूरी है। पेड़ नही रहेंगे तो हम जीवित कैसे रहेंगे"।
       तब गोलू बोला यदि पेड़ जरूरी हैं तो काटे क्यों जा रहे हैं और हम फिर से पेड़ लगाएँगे उन्हें बड़ा करेंगे उनकी देखभाल करेंगे उनसे प्यार करेंगे उन्हें अपना मित्र बनाएँगे और फिर एक दिन वह पेड़ काट दिया जाएगा।
        नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता इसीलिए हम पेड़ नहीं लगाएँगे।
       तब शिक्षिका ने सोचा कि गोलू का बाल मन अपने मित्र बरगद के पेड़ के कटने से बहुत आहत हो गया है। इस कारण उसकी कोमल भावनाएँ खत्म हो रही हैं और उनकी जगह उसके मन में आक्रोश भर गया है जो उसके भविष्य के लिए चिंताजनक है।
        शिक्षिका ने कुछ सोचा और कहा कि "अगर मैं प्रॉमिस करूँ कि आपका लगाया पेड़ आपका प्रिय मित्र अब हमेशा जीवित रहेगा। उसे कोई नहीं काटेगा। तब तो आप पेड़ लगाएँगे ।"
       सब बच्चे बोल पड़े "हाँ मेम"। पर गोलू असमंजस में खड़ा रहा और बोला "क्या ये सम्भव है?"
       शिक्षिका ने कहा -"बिलकुल पर इसके लिए आपको मेहनत करनी पड़ेगी।"
       "अधिक कुछ नहीं बस अच्छे से पढ़ाई करके आप सब को ऐसी तकनीक खोज निकालनी है जिससे हम एक पेड़ को दूसरी जगह प्रत्यारोपित कर सके।"
       बच्चे बोले "क्या ऐसा हो सकता है?"
     "हाँ विदेशों में ऐसी तकनीक विकसित हो चुकी है वहाँ पेड़ों की जड़ जितनी गहराई का एक बड़ा गड्ढा खोदा जाता है फिर जेसीबी मशीन से पेड़ को जड़ सहित उखड़ा जाता है और बड़ी बड़ी क्रेन मशीनों से पेड़ को ले जाकर उस गड्ढे में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस तरह वह पेड़ हमेशा जीवित रहता है और हमारी समस्या का हल भी हो जाता है। सड़क बनाने के लिए स्थान खाली हो जाता है और पेड़ भी सुरक्षित हो जाता है।"
    "हाँ अब बोलो बच्चों अब तो आप सब पेड़ लगाएँगे?"
    "हाँ मैम हम सब पेड़ लगाएँगे और उनकी रक्षा भी करेंगे"।
    "और गोलू तुम?" शिक्षिका ने कहा।
     तब गोलू थोड़ा मुस्कुराया और बोला "हाँ मैम में अपने नंदन की याद में फिर से बरगद का पेड़ लगाउँगा।"
     और शिक्षिका आश्वस्त हो गयी कि उन्होंने गोलू की कोमल भावनाओं को कुंठित होने से बचा लिया।

लेखिका
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज, नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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