181/2025, बाल कहानी- 01 नवम्बर



बाल कहानी - महाभोज
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आज महाभोज था। गाँव के सरपंच जी की माँ की तेरहवीं थीं। आस-पास के कई गाँव को न्योता था।
अभी-अभी ही राजमन्त्री का ताज पहनने वाले रस्तोगी जी भी आने वाले थे। सब व्यवस्थाएँ चाक-चौबन्द थीं। किसी तरह की कमी न रह जाये। पकवानों की खुशबू से गाँव महक रहा था।
गाँव वालों का भोज सुबह दस बजे से ही चल रहा था। नन्हा बुधिया पहली पंगत में ही जुगाड़ लगाकर खा आया था।
पर दोपहर बाद उसे फिर से लालसा हुई कि, "रोज-रोज कहाँ ऐसा खाना मिलता है' चलकर एक बार और खा लूँ।" उसे अब फिर से भूख लगने लगी थी।
वैसे भी इतनी गहमागहमी में किसे पता चलेगा कि मैं दोबारा आया हूँ?
अपनी कल्पनाओं को उड़ान देता बुधिया पगंत में घुसने की हिम्मत जुटा ही रहा था कि उस पर सरपंच के मुंह लगे धीरा की कुदृष्टि पड़ गई।
"क्यों रे! तू अब यहाँ क्या कर रहा है ? सुबह खा तो गया था, चल भाग यहाँ से, भण्डारा समझ रखा है क्या?"
उसने इतनी जोर से बुधिया को लताड़ा कि सरपंच तक उसकी यह स्वामिभक्ति वाली आवाज पहुँच जाए।
अब ऐसा हुआ कि नहीं, पर बुधिया इस अप्रत्याशित अपमान से अन्दर तक हिल गया और अपनी आँखों की नमी छुपाते हुए वहाँ से भाग गया।
थोड़ी ही देर में हल्ला मचा- मन्त्री जी आ गए..मन्त्री जी आ गए।
दस्तरखान बिछ गया। छप्पन भोग सजा दिए गए।
"ये लाओ रे, वो लाओ रे" से पण्डाल गूँजने लगा।
रस्तोगी जी ने ना-नुकुर करते हुए कुछ निवाले गले से उतारे और फोन पर ही "हाँ जी, हेलो जी" करते, किसी की तरफ हाथ हिलाते तो किसी की तरफ गर्दन झुकाते चल पड़े।
ये सब करना रस्तोगी जी की मजबूरी थी। इन्हीं गाँव वालों की बदौलत तो आज यहाँ तक पहुँचे हैं तो कुछ दिन तो लिहाज दिखाना होगा।
मन ही मन बुदबुदा रहे थे कि, "कहाँ ये ओज भोज के चक्कर में पड़ गए?"
रस्तोगी जी के चलते ही चमचे-चपाटे भी बिना खाए ही उठ गए। बेचारे मजबूरी में, करते भी क्या?
"यूँ ही जी हुजूरी करते रहेंगे तो एक दिन बारे न्यारे हो ही जाएँ शायद।" मन्त्री जी के जाते ही पत्तलें उठवाकर घूरे पर डाल दी गईं, क्योंकि जूठन जो थी।
पचासियों लोगों का खाना धूल में पड़ा था और कुत्ते दावत उड़ा रहे थे ।
उधर दूर खड़ा दुःखी बुधिया सोच रहा था। मैं दो पूड़ी और खा लेता तो ऐसा कौन-सा अकाल आ जाता सरपंच जी के महाभोज में?

#संस्कार_सन्देश - 
हमें कोई भी कार्य दिखावे के लिए नहीं सदाशयता के लिए करना चाहिए।

कहानीकार-
#पूनम_सारस्वत 'प्रज्ञा' (स०अ०)
एकीकृत वि० रुपा (नगला)
खैर, अलीगढ़ (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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