177/2025, बाल कहानी- 25 अक्टूबर


बाल कहानी - शिक्षा का महत्व
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आज राष्ट्रपति पुरस्कार का कार्यक्रम चल रहा था। आँखें खुशी के आँसुओं से नम थीं। बीस साल पहले का वो दिन याद आकर उसको अतीत की गहराई में ले जाता है। नम आँखों से वो अतीत की गहराईयों में डूब जाती है। 
शोभा चार बहन-भाईयों में अपने माता-पिता की सबसे बड़ी सन्तान थी। माता-पिता की बीमारी की वजह से घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई कभी नहीं रूकने दी। जैसे-तैसे इण्टर की परीक्षा पास करके शोभा ने ट्यूशन देना शुरू कर दिया और ग्रेजुएशन में दाखिला भी ले लिया। 
वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ ही घर की बड़ी बेटी की जिम्मेदारी भी निभा रही थी, आर्थिक रूप से अपने माता-पिता का हाथ बँटाकर।
समय बीतता गया। उसने गेजुएशन पूरी करके बी०एड० की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली। टैट की परीक्षा भी 75% अंकों के साथ उत्तीर्ण करके वह आगे की जंग लड़ने के लिए तैयार थी। उसकी नियुक्ति भी बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर हो गयी। उसके सपनों को तो जैसे पंख लग गये थे। वह अपनी हर जिम्मेदारी को निभाने के लिए अब आर्थिक रूप से भी सक्षम हो चुकी थी।
लेकिन नियति को कुछ और ही मन्जूर था, उसके पिता जी की तबियत और भी ज्यादा खराब रहने लगी। एक दिन वह सभी को छोड़कर स्वर्गलोक चले गये। उसके परिवार पर तो दुःखों का पहाड़ टूट गया था। वह अपनी माँ और भाई-बहन को सँभाल रही थी जबकि वह अन्दर से बिल्कुल टूट चुकी थी। 
धीरे-धीरे समय बीतता गया। उसके भाई-बहन की शादी हो गई और वह अपनी-अपनी घर गृहस्थी में खुशहाल जीवन जी रहे थे। शोभा बहुत खुश थी कि उसके पिता जी जो जिम्मेदारी उसे सौंपकर गये थे, उसको उसने बहुत अच्छी तरह से निभाया था।
वह भी शादी करके अपनी घर-गृहस्थी में रम गयी थी, लेकिन उसके अपने पापा का सपना पूरा करने के लिए वह अभी भी जी-जान से जुटी हुई थी। उसे समाज में अलग पहचान बनानी थी। कुछ कर दिखाना था, जहाँ उसके खुद के नाम से उसको जाना जाये। 
आज उसका वो सपना पूरा हो चुका था। जैसे ही सम्मान प्राप्त करने के लिए शोभा का नाम माइक पर पुकारा गया। वह जैसे मानो गहरी नींद से जाग उठी और मंच पर पुरस्कार प्राप्त करते समय आँसुओं की माला मोती बनकर लुढ़क रहीं थी। उसने ऊपर आसमान की ओर देखकर अपना पुरस्कार ऊपर किया, मानो कह रही हो कि देखो, पापा! आज आपका सपना पूरा हुआ।

#संस्कार_सन्देश - 
बेटियों को भी पढ़ाई का मौका देना चाहिए, जिससे वह आत्मनिर्भर बन सकें। 

कहानीकार-
#ब्रजेश_सिंह (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बीठना, 
लोधा, अलीगढ़ (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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