178/2025, बाल कहानी- 27 अक्टूबर


बाल कहानी - दोस्ती
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बेचारा राजू कोई संगी-साथी न होने के कारण अपनी बछिया के साथ ही खेलता रहता। माँ का देहान्त बचपन में ही हो गया था और पिता काम का बहाना करके कहीं दूर, किसी दूसरे शहर में दूसरों के साथ रहने लगा था।
यहाँ राजू और उसकी बड़ी बहन पास-पड़ोस के आसरे दिन काट रहे थे। वो तो भला हो दीनू का कि प्रधानमन्त्री आवास योजना में मकान मिलने के बाद एक कमरा इन दोनों बहन-भाइयों को उसने स्थायी रूप से दे दिया था।
दिन तो यहाँ-वहाँ मेहनत मजदूरी करते और विद्यालय में पढ़ाई करते गुजर जाता और रात काटने के लिए इस छत का होना भी किसी वरदान से कम न था इन दोनों के लिए। संगी-साथी न होने के कारण राजू का झुकाव अनायास ही प्रकृति की तरफ होता चला गया।
वह बछिया को घर के पास ही के जंगल में चरने के लिए छोड़ देता और खुद पेड़-पौधों से अपने मन की बातें करता रहता।
अब पेड़-पौधे उसकी बात सुनते कि नहीं, पर उसका जी बड़ा हल्का हो जाता। वह इनमें ही अपना परिवार खोजता।
एक बार वह वापस आ रहा था कि एक कछुआ घायल अवस्था में उसे पड़ा दिखा। वह ठिठक कर रुक गया। "क्या करना चाहिए?" पल भर उसने सोचा और फिर उसे लेकर घर आ गया।
कछुए के पैर में गहरी चोट थी। उसने उसके घाव को धोया और दीनू की मदद से उसको दवाई लगायी। एक बड़े से गढ्ढे में कछुए के रहने का प्रबन्ध कर वह आश्वस्त हो गया। रात में उठ-उठ कर भी वह यह देखता रहा कि कछुआ ठीक तो है?
कई दिनों की सेवा के बाद कछुआ अपने पैर के सहारे से चलने लगा। अब वह गढ्ढे से निकलकर यहाँ-वहाँ आँगन में भी घूमता। राजू को तो जैसे एक सच्चा साथी मिल गया।
वह उस दिन से अभी तक जंगल ही नहीं गया था क्योंकि उसे कछुए की फिक्र लगी रहती। उसने कछुए का नाम अपने नाम से मिलता-जुलता संजू रख दिया था।
अब संजू जब ठीक हो गया तो राजू की बहन ने समझाया कि, "इसे जंगल में छोड़ आओ क्योंकि वहीं उसका घर है।"
वो ना-नुकुर करने लगा तो बहन ने समझाया कि, "सभी को अपने घर और माँ-बाप की याद आती है, इसे भी आती होगी।"
माँ-बाप का नाम सुनते ही न जाने राजू को क्या हुआ कि वह अपने प्राण से प्यारे दोस्त को छोड़कर आने को तैयार हो गया।
राजू अगले दिन संजू को घर के पास जंगल से पहले पड़ने वाले तालाब के किनारे छोड़ आया ।
पर ये क्या? अगली सुबह संजू फिर से घर पर था।
राजू उसे फिर छोड़ आया, पर संजू फिर वापस आ गया। अब राजू ने उस समझाने की ठानी। राजू ने उसे हाथ में उठाया और बोला, "संजू! ध्यान से सुनो- यहाँ तुम्हारी जान को खतरा है। यहाँ कुत्ते भी हैं और रास्ते में गाड़ियाँ भी चलती हैं इसलिए इस तरह वापस न आया करो। मुझे पता है तुम्हें मेरी याद आती है और मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आती है।
अब मैं तुमसे वादा करता हूँ कि रोज शाम को मिलने मैं तुम्हारे पास आ जाया करूँगा। तुम यहाँ आकर अपनी जान खतरे में कभी मत डालना।" अब एक सच्चे साथी की तरह कछुए ने उसकी बात मान ली। अब रोज शाम को राजू अपनी बछिया के साथ तालाब के पास जाता, कुछ समय उसके साथ खेलता और फिर वापस आ जाता। राजू और संजू की दोस्ती यूँ ही चलती रही।

संस्कार सन्देश- 
हमें सच्चे दोस्त का साथ हमेशा देना चाहिए। पेड-पौधे और जीव-जन्तु हमारे मित्र से कम नहीं हैं।

कहानीकार-
#पूनम_सारस्वत (स०अ०)
एकीकृत वि० रुपा-नगला 
खैर, अलीगढ़ (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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