169/2025, बाल कहानी- 11 अक्टूबर
बाल कहानी - चुनमुन की चतुराई
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चुनमुन नाम की एक प्यारी-सी लड़की अपने परिवार में सभी की लाडली थी। चुनमुन बचपन से ही बहुत तेज दिमाग की लड़की थी। उसके पिता टेंपो चलाते थे। एक दिन उसके पिता की तबीयत खराब हो गई। इलाज के लिए पैसे नहीं थे। डॉक्टर ने दवाई देने से मना कर दिया तो बीमारी में टेंपो चलाने के लिए तैयार हो गए। चुनमुन यह देख रही थी। उसने पिताजी से कहा कि, "आप आराम करें और आज टेंपो मैं चलाऊँगी।" पिताजी ने कहा, "अभी तुम बहुत छोटी हो?"
लेकिन चुनमुन नहीं मानी और टेंपो लेकर चली गयी क्योंकि वह पिताजी के साथ अक्सर घूमने जाया करती थी। उसको मालूम था कि किस तरीके से टेंपो चलाते हैं। उसने सवारियों से विनती की तो सवारियाँ हँसने लगी कि, "तुम बहुत छोटी हो।" सुबह से शाम हो गई। अब चुनमुन परेशान थी कि, "पैसे नहीं आयेंगे तो पिताजी की दवा कहाँ से आयेगी?" हार कर चुनमुन घर वापस आ रही थी, तभी रास्ते में एक बूढ़े बाबा अपना सामान लेकर बैठे हुए थे। चुनमुन ने कहा, "बाबा! कहाँ जाना है?" उन्होंने पता बताया और चुनमुन ने उनको घर पहुँचा दिया। तब बाबा ने पैसे देते हुए पूछा कि, "बेटा! अभी आप दस-बारह साल की हो और यह टेंपो क्यों चला रही हो?" तब चुनमुन ने सारा हाल बताया। तब बाबा की आँखों से आँसू निकल आये। उन्होंने कहा कि, "बेटा मैं रोज एक कारखाने में जाता हूँ और वहाँ से सामान लेकर आता हूँ। अगर आप राजी हो तो मुझे लेकर जाओ और शाम को घर पर छोड़ सकती हो।"
चुनमुन बहुत खुश हुई और वादा करके घर पिताजी की दवा लेकर आ गयी। पिताजी को सारा हाल बताया। पिताजी बहुत खुश हुए। कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ हो गए। तब पिताजी ने कहा कि, "बेटा! तुम अपनी पढ़ाई करो। आज से मैं टेंपो चलाऊँगा।
दूसरे दिन जब चुनमुन विद्यालय पहुँची तो मास्टर जी ने डाँट लगायी। चुनमुन ने सारा हाल बता दिया। तब मास्टर जी ने उसको बहुत शाबाशी दी और उसके साथ उसके पिताजी से मिलने उसके घर आये और कहा कि, "आपकी चुनमुन बहुत चतुर है। आज से इसकी पढ़ाई का खर्चा हम उठायेंगे।" चुनमुन बहुत खुश हुई। वह अपनी आगे की पढ़ाई करती हुई बड़ी होती गई। उसने घर में ट्यूशन का कार्य भी चालू कर दिया। अब आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो गई थी। बड़े होकर वह टीचर बनना चाहती थी। पिताजी को उसका सुझाव अच्छा लगा और उसका सपना पूरा हुआ। मास्टर जी और पिताजी के साथ-साथ सभी गाँव वालों ने चुनमुन को उसकी चतुराई की शाबाशी दी। और कहा कि, "सभी बच्चों को चुनमुन की तरह बनना चाहिए।"
#संस्कार_सन्देश -
जो बच्चे अपने माता-पिता की स्थिति को समझते हैं और उनके अन्दर कुछ करने की चाह होती है, उनको सफलता हमेशा मिलती है।
कहानीकार-
#पुष्पा_शर्मा (शि०मि०)
पी० एस० राजीपुर, अकराबाद
अलीगढ़ (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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