प्यासी अंखियाँ

माँ जी, पापा, दादा-दादी,

ताई-ताऊ, चाचा-चाची,

भाई-बहनों की किलकारी,

एक साथ अपने ही घर में,

प्यासी अंखियाँ आज हमारी।


मामी-मामा, नाना-नानी,

माँ सा दुलार करती मांसी,

माथे हाथों पर पुचकारी,

एक साथ सपनों के घर में,

प्यासी अंखियाँ आज हमारी।


अपने वयोवृद्धों की वाणी,

ऐतिहासिक नैतिक कहानी,

सुनकर बाल बनते संस्कारी,

एक साथ संस्कृति के घर में,

प्यासी अंखियाँ आज हमारी।


मन के भावों को पढ़ लेना,

प्रेम सदा सुख ही सुख देना,

चिंता दूर करे कलाकारी,

एक साथ संगम के घर में,

प्यासी अंखियाँ आज हमारी।


रचयिता

ऋषि दीक्षित, 

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय भटियार,

विकास क्षेत्र- निधौली कलाँ,

जनपद- एटा।



Comments

  1. बहुत सुंदर रचना ऋषि जी

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