मजदूर

"पापी पेट की खातिर घर से दूर हुए हम।

पैसे चंद  कमाने को,  "मजदूर"  हुए हम।।


जिम्मेदारी सर पर आई जब परिवार के पालन की,  

मजदूरी करने को, मजबूर हुए हम।।

  

पेट में अन्न, जेब में धन न, बच्चों को नहीं दूध, 

दिल फाड़ के दिखलाएँ, गमों से चूर हुए,

पैसे चंद  कमाने को,  "मजदूर"  हुए हम।।


अब तक काट रहे थे, अंधेरों में जीवन हम,

आ रहे हैं टीवी पर, आज मशहूर हुए हम,

पैसे चंद  कमाने को,  "मजदूर"  हुए हम।।


छोड़ा शहर,गाँव नहीं पहुँचे, बीच में भटक रहे,

घर के रहे न घाट के, कुक्कूर हुए हम,

पापी पेट के खातिर घर से दूर हुए हम।

पैसे चंद  कमाने को,  "मजदूर"  हुए हम।।

 

रचयिता

पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।




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