श्रमिक हैं सभी जनमानस

श्रमिक हैं सभी जनमानस इस जग में,

कोई छोटा, कोई बड़ा श्रमिक कहलाता है।

करते हैं कर्म अपने-अपने हिस्से का सभी,

कोई उद्योग वाला है, कोई उद्योग चलाता है।।


रोजी, रोटी, रोजगार की खातिर श्रमिक,

एक स्थान से दूसरे स्थान, काम पर जाता है।

निज श्रम, ईमानदारी से निभा अपनी ड्यूटी,

देश की अर्थव्यवस्था में भागीदारी निभाता है।।


ना सुबह-शाम की फ़िक्र, ना दिन-रात पता,

अपनी मेहनत से उम्मीद का दिया जलाता है।

ना धूप दिखती ना छाँव, ना जलते उसके पाँव,

काम धन्धे मे हो व्यस्त, अपना जीवन चलाता है।।


थोड़े मान-सम्मान, मजदूरी में होकर संतुष्ट,

संतुष्ट भाव से अपनी जिम्मेदारियाँ निभाता है।

बढ़ती महँगाई और घटती आमदनी के कारण,

अपनी ख्वाहिशों का दमन करके,

बस जीता जाता है, बस जीता जाता है।।


रचयिता

अमित गोयल,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय निवाड़ा,

विकास क्षेत्र व जनपद-बागपत।

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