पिता

हिमालय सा खड़ा हो धूप में
सर्दी व पानी में।
उस शख्स को हम सब पिता
कह कर बुलाते हैं।।
उँगली थाम कर चलना सिखाता
है हमें वो ही।
कभी घोड़ा बन कर पीठ पर
हमको बिठाते हैं।।
करते हैं हमारी हर ख़ुशी पूरी
अपने अधूरे सपनों को मारकर।
सन्तान की खातिर कुछ भी
कर गुजरते हैं।।
फ़ीस भरने को मिन्नतें करते हैं साहब से
बर्थ डे और त्योहारों पर ओवर टाइम करते हैं।।
अपमान का घूँट पीकर भी
घर आकर मुस्कराते हैं।।
कोई दर्द पानी बन कर
आँखों में न आ जाए।
मजबूरी छिपाने को कलेजा
पत्थर बनाते हैं।।
इस वट वृक्ष की छाया जब तक
हमारे साथ रहती है।
हम बेफ़िक्र हो कर तभी तक
जीवन बिताते हैं।।
कभी इनकी उपेक्षा और अपमान
मत करना।
बहुत तकलीफ होती है जब
हमें ये छोड़ जाते हैं।।

रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

Comments

Total Pageviews