कवि

एक कवि न जाने
कितने बिम्ब बनाता है रोज।
कोरे पट पर अपनी
कल्पनाओं के रंग से रंगता है।
शब्दों में ढालकर शब्दों की
 माला सी बनाता है।
सपनों के चित्रपट बनाता,
मन से सजाता है।
इस तरह कुछ व्यथाएँ,
कथाएँ वो लिखता है।
वो जमाने की सारी व्यथा,
कविताओं में कहता है।
जो गुजरता है उस पर,
उसे भी कह देता है।
दूसरों के भी एहसासों को,
बखूबी पढ़ लेता है।
कविता लिखना आसान नहीं,
पर, वही लिखता है।
जिसके हृदय में भावनाओं का,
मधुमास खिलता है।
सुने कोई या अनसुना कर दे,
अपनी बात कहता है।
राहों पर उजालें हो हर ओर,
बस ये दुआ करता है।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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