आओ पेड़ लगाएँ

सभी को भाती है हरियाली,
हरी -भरी  प्रकृति यह सारी,
ठंडी- ठंडी शीतल  हवा यह प्यारी।

फिर भी आसपास क्यों काटे जा रहे पेड़ निर्दयता से।

क्योंकि...हमको तो करना है विकास बहुत सारा।
और जो सड़को, इमारतों, फैक्टरियों इत्यादि -इत्यादि के बिन है अधूरा।।

क्योंकि... हमको तो करना  है, घरों के हर  कोने-कोने का भी  इस्तेमाल पूरा का पूरा।
और अब इसी चक्कर में नहीं मिलता वो कच्चे आँगन वाला पुराना ज़माना जो पेड़ों व पौधों के हिलने से  झूमा करता था।।

कितना अच्छा लगा करता था, जब हर आँगन में आम, अमरूद, नीम, जामुन आदि पेड़ों की पत्तियाँ हिला करती थीं, उसमे भी एक मधुर ध्वनि हुआ करती थी।।

बच्चों के खेल का भी हिस्सा हुआ करते थे, तब यह पेड़ प्यारे।
इन पर चढ़ खेल-खेल में ही इनके फलो  का आंनद लिया करते थे बच्चे सारे।
पेड़ तो हमेशा मनुष्य के मित्र रहे हैं, बात हो चाहे पर्यावरण संतुलन की, चाहें हो पशु -पक्षियों के आसरे की, चाहे हो गर्मी से राहत की, चाहे हो अच्छी वर्षा की, चाहे हो भू -गर्भ के जल की।।

क्यों न हम सब मिल कर वह, बीता कल फिर से ले आएँ,
अपने बच्चों को वही हरियाली, वही वातावरण उपलब्ध कराएँ,
अपने घरों में कुछ कच्चा आँगन छोड़े और कुछ पेड़ वहाँ लगाएँ,
वही हरियाली, वही ठंडक, वही बरसात एक बार क्यों न हम फिर से ले आएँ।
आओ मिल कर पेड़ लगाएँ, आओ मिल कर पेड़ लगाएँ।।

रचयिता
रंजना,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय रेवाड़ी, 
विकास खण्ड-मालवा, 
जनपद-फतेहपुर।

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