दिल एक मंदिर

न कहीं जाने की जरूरत,
न आने का झंझट,
बस दिल को ही मन्दिर बना लीजिए।
न हो रुसवा कोई,
न हो बहका कोई,
बस हृदय से अन्धकार को मिटा लीजिए।
जब दुनिया है गोल,
फिर एक दूसरे से मुलाकात होगी ही,
इसलिए हृदय के नफरत के शोलों को मिटा लीजिए ।
अपने बच्चों से अच्छे बन जाएँगे
ये गरीब बच्चे,
बस उनके सिर पर,
हाथ अपना बना लीजिए।।

रचयिता
नरेन्द्र सैंगर,
सह समन्वयक,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।


Comments

  1. Very heart touching. Pls continue to Keep the spirit high.

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