वृक्ष की पुकार

कहा वृक्ष ने मेरे भैया, मुझको काट गिराओ ना,
हरी-भरी धरती माता को, वृक्ष विहीन बनाओ ना।
मुझको काट दोगे भैया, तो फल कहाँ से खाओगे?
सब्जी, दाल, मसाले और अन्न कहाँ से लाओगे?

श्वसन के लिए प्राणवायु, बोलो किससे पाओगे?
मुझे काट कर भैया, तुम प्रदुषण को बढ़ाओ ना।
कहा वृक्ष ने मेरे भैया, मुझको काट गिराओ ना,
हरी-भरी धरती माता को, वृक्ष विहीन बनाओ ना।

आपके जैसा जीवन मुझमें, तुम्हें इतना याद नहीं,
सभी कह रहे लगाओ, सुनते क्यों फरियाद नहीं?
पर्यावरण अमूल्य निधि है, करना इसे बर्बाद नहीं।
जीव जगत के संकट को, तुम और बढ़ाओ ना।

कहा वृक्ष ने मेरे भैया, मुझको काट गिराओ ना,
हरी-भरी धरती माता को, वृक्ष विहीन बनाओ ना।

हम आपके बड़े भाई, तुम से पहले धरा पे आये हैं,
सब कुछ तुम्हें दे दिया, क्या अपने लिए बचाये हैं?
मानव के पुत्रों सोचो, आप क्या नहीं हमसे पाये हैं?
ऐसे महादानी को भैया, तुम यूँ ही बिसराओ ना।

कहा वृक्ष ने मेरे भैया, मुझको काट गिराओ ना,
हरी-भरी धरती माता को, वृक्ष विहीन बनाओ ना।
वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ।

रचयिता
प्रदीप कुमार,
सहायक अध्यापक,
जूनियर हाईस्कूल बलिया-बहापुर,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा,
जनपद-मुरादाबाद।

विज्ञान सह-समन्वयक,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा।

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