पर्यायवाची काव्य रूप में भाग-1

एकदंत, गणपति, लंबोदर, देवों में प्रथमेश।
विनायक, गजानन भी कहते हैं, जय हो श्री गणेश।।
लोचन, चक्षु, दृग, नेत्र, विलोचन, आँख के हैं नाम।
जिससे हम देखकर, करते कोई काम।।
है अपनी ज्ञानेन्द्री, सुनने का करती काम।
कर्ण, श्रवण, श्रवणेन्द्रिय, श्रुतिपट कान के नाम।।
पादप, वृक्ष, विटप, द्रुम, पल्लव, ये हैं पेड़ के नाम।
फल, फूल ये देते हमको, इनको तुम लो जान।।
सलिल, वारि, पानी, उदक, नीर, अंबु और तोय।
पानी के ये नाम हैं, जो जाने प्रवीण होय।।
ताल, तडाग, सरोवर, पुष्कर, जलाशय के हैं नाम।
रहते इसमें जीव-जन्तुु हैं, तालाब भी इसी का नाम।।
सुग्गा, सुआ, कीर, शुक, तोता, पाँच नाम सुग्गे का होता।
वसुधा, धरा,भूमि,भू, धरती, पृथ्वी ही है सब कुछ सहती।
दिवा, दिवस, वार और वासर, दिन के नाम को करे उजागर।
घोड़ा, घोटक, अश्व, हय, बाजी, बाजि, तुरंग।
चढ़ि दौड़ाए सड़क पर, बाढ़ै अंग उमंग।।
हर मौसम में चले नदी में, सब पार उतरने को रहते हैं।
तरिणी, तरी, नाव और बेड़ा, नौका को हम कहते हैं।।
असि, कृपाण, करवाल, खड्ग, चन्द्रहास, तलवार।
युद्ध और रणभूमि में, करे दुश्मन पर वार।।
         
रचयिता
अरविन्द कुमार सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धवकलगंज, 
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-वाराणसी।

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