आ जाओ मेघा प्यारे

आशाओं के बन मीत हमारे,
आ जाओ अब मेघा प्यारे।
प्यासी धरती जीवन प्यासा,
आकुल मन में एक निराशा।
जैसे जलती यहाँ अगन हो,
सूना जैसे आज चमन हो।
बिन पानी के सब सपने हारे।
      आ जाओ अब मेघा प्यारे।
तिनका तिनका सूखा सारा,
क्षुप भी चुप है यहाँ बिचारा।
जन जन मन कहते आओ,
अब बूँद-बूँद जल बरसाओ।
भर दो पोखर गाँव हमारे।
    आ जाओ अब मेघा प्यारे।
यह तपती तपन न भाती है,
जैसे तन में अगन लगाती है।
पथ पर चलना दुष्कर होता,
मन का धीरज फिर तो खोता।
व्याकुल मन की आस पुकारे।
       आ जाओ अब मेघा प्यारे।
   
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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