तपती धरा की व्यथा

तपती धरती, सूखे खेत,
बंजर भूमि, जलती रेत।
ताल-तलैया, कुएँ-सरोवर,
सूखे जल के सारे स्रोत।

जीव-जंतु, सारे पशु-पक्षी,
व्याकुल धरा का हर एक प्राणी।
शुष्क ओष्ठ और तपती देह,
रुदन-क्रंदन हर एक वाणी।

रस्ता देख रहे वर्षा का,
व्याकुल, नीर रहित ये नैन।
त्राहिमाम का शोर हर ओर,
जग में नहीं कहीं अब चैन।

हाहाकर मची चहुँओर,
प्यासी धरा करे चीत्कार।
ताक रहे सब नभ की ओर,
व्यथित हो मन करे पुकार।

घट भर कर लाओ मेघराज,
जाकर महासागर के द्वार।
शीतल जल की बूँदों से,
तृप्त करो जो हैं निष्प्राण।

रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।

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