आओ पर्यावरण बचाएँ

प्रकति के ये स्रोत अटल
भूमि, वायु और जल
तरु, लता, पुष्प और फल
इनसे ही हमारा आज और कल

पेड़
पेड़ है प्रकति का गहना
ये चाहते हैं हमसे कुछ कहना
जीवन की रक्षा हम करते
रोग - विकार सब हरते
कंचन सी काया हम करते
धूप में छाया हम करते
      इसका तुमको तनिक न ध्यान
       क्यों निर्मम बन लेते मेरे प्राण
       मानव तू दानव न बन
       खूब लगाओ वन - उपवन
सब मिल एक - एक पेड़ लगाएँ
आओ पर्यावरण को बचाएँ

नदियाँ
नदियों का है कहना
हमको सदा शुद्ध है बहना
हमें न कूड़ादान बनाओ
गन्दा कचरा न हममे बहाओ
          मानव तू न बन अज्ञानी
          क्यों करता है दूषित पानी
          जल ही तो जीवन है
          प्रकृति का अनमोल रत्न है
इसको न यूँ व्यर्थ बहाएँ
आओ पर्यावरण बचाएँ

वायु
वायु का है ये कहना
शुद्धता है मेरा गहना
यूँ न करो मुझे कलुषित
जहरीली गैसों से होती मैं प्रदूषित
         शुद्ध अगर होगी वायु
         लम्बी देगी तुमको आयु
         जब से हुआ विज्ञान प्रबल
         तब से हुयी वायु दुर्बल
वायु प्रदूषण पर रोक लगाएँ
आओ पर्यावरण बचाएँ

मानव
आँख, कान, बुद्धि सब बन्द है
खुद में ये बनता स्वछन्द है
झूठी शान - सौकत में व्यस्त है
कल की चिंता छोड़ बस आज में मस्त है
हे मानव!
उठ, जाग और जरा विचार कर
आने वाली पीढ़ी पर उपकार कर
मनुष्य है, पशु की तरह व्यवहार न कर
प्राकृतिक संपदा को यूँ बर्बाद न कर

सब मिलकर ये अलख जगाएँ
आओ पर्यावरण बचाएँ

रचयिता
रीनू पाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय दिलावलपुर,
विकास खण्ड - देवमई,
जनपद-फतेहपुर।

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