अच्छी शिक्षक

अच्छी शिक्षक बनकर
आज गयी मैं सबसे पहले
अपनी कक्षा के अन्दर।
बच्चे ऐसे कूद रहे थे
जैसे डाली पर बन्दर।।
मुझको देखा सारे बन्दर बन गये भीगी बिल्ली।
मैंने उन पर रौब जमाया
और उड़ायी खिल्ली।।
जैसे ही मैं गयी क्लास में
सिखा दिया मैंने गुणा।
कक्षा दो के बच्चे थे
कोई मुझसे नहीं जुड़ा।।
हो गया अब ये रोज का किस्सा
मैं जब कक्षा में घुसती बन्दर हो जाते बिल्ली।।
मेरा फिर भी काम रोज का
डाँट फ़टकार लगाई।
पर मैं भीगी बिल्ली को शेर नही बना पाई।।
एक दिन एक अभिभावक आया
बड़े रौब से मुझे बताया।
मेरा बच्चा अच्छा है, जाने क्यूँ नही पढ़ता है।
मेरा अहंकार गुर्राया
कोई नही पढ़ा सकता है।।
यहाँ के बच्चे मंदबुद्धि हैं।
अभिभावक को मतलब नहीं है।।
कोई इनको पढ़ा सके।
ऐसी किसी में कूवत नहीं है।।
फिर एक दिन ऐसा आया
जिसने मुझको सबक सिखाया।
और जीवन ने फिर से
मुझको एक अच्छा इन्सान बनाया।।
मैं बेटी के स्कूल गयी
बड़ी शान से खुशी-खुशी।
टीचर बोली बच्ची में कुछ ठीक नहीं है।
बच्ची मेरी सहम गयी है।।
मैंने पूछा सहज भाव में क्या कमी है?
कमी यही है बस
अंग्रेजी बोल नहीं सकती।।
माँ की ममता उमड़ पड़ी पाँच साल की छोटी बच्ची।
अंग्रेजी न बोली तो नहीं सही
मेरी बच्ची अच्छी है।।
जाने क्यूँ चुप-चुप सी है
कविताएँ रच लेती है और कहानियाँ भी।
अब गयी मैं सबसे पहले अपनी कक्षा के अन्दर।
बच्चों के संग मैं भी कूदी
जैसे डाली पर बन्दर।।
बन्दरों की मैं माँ बन गयी
एक अच्छी इंसान बन गयी।
खेलकूद में दी फिर शिक्षा
और अच्छी शिक्षक बन गयी।।

रचयिता
सुमन लता मौर्या,
प्राथमिक विद्यालय जोलहापुर,
विकास खण्ड-बिलरियागंज,
जनपद-आजमगढ़।

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