अच्छा नहीं होता

अच्छा नहीं होता कभी,
खुद पर नाज करना।
      कल पर कोई बात न टालें,
      सोचें जो बस आज करना।
गमों को हमेशा सहते जाना,
कभी मत तुम आवाज करना।
     जैसा बोयेंगे बीज यहाँ पर,
      वैसा ही हम यहाँ काटेंगे।
सुख, दुःख में शामिल हो,
दुःख दर्द हमेशा बाँटेंगे।
        हम तो चलते अकेले राही,
         रास्ते में अनेकों मिलते हैं।
सुख में होते साथ सभी,
दुःख में किनारे होते हैं।
        यहाँ की यह रीति पुरानी,
         खुद अपना रिवाज बनाना।
अक्ल के अंधे कभी न बनना,
प्रभु के हमेशा बंदे बन रहना।
       संसार में क्या लीला उसकी,
     सम्भव नहीं उसे गिनते रहना।
कोशिश रहे सदाचार हमारा,
सबके दिलों पर राज करना।।

रचयिता
रवीन्द्र शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बसवार,
विकास क्षेत्र-परतावल,
जनपद-महराजगंज,उ०प्र०।

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