शहादत

मातृभूमि के कण-कण में,
वीरों का लहू समाया है,,
कहीं अशफाक शहीद हुए,
कहीं बिस्मिल को लटकाया है,,
भगत सिंह ने फाँसी चूमी,
मरते-मरते मुस्काये थे,,
जो चन्द्र शेखर गुर्राए थे,
सारे दुश्मन थर्राए थे,,
खूब लड़ी झाँसी की रानी,
मर्दानी कहलाई थी,,
मंगल पांड़े ने ताना सीना,
कितनों ने गोली खाई थी।।

गाँधी-सुभाष के पद चिन्हों पर,
कदम से कदम मिलाया था,,
मर-मिटे स्वतंत्रता पाने को,
आज समय वो आया था,,
लाखों लाल शहीद हुए,
तब माँ को तिलक लगाया था,,
सपना जो बोया था मन में,
सन सैंतालिस में पाया था।

भूल चुकी सारी दुनिया,
मैं उनकी याद दिलाता हूँ,,
नमन है उन वीरो को मेरा,
जो साँस खुले में पाता हूँ,,
नमन है उन वीरों को मेरा,
जी साँस खुले पाता हूँ।।

रचयिता
राजीव कुमार,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बहादुरपुर राजपूत,
विकास खण्ड-कुन्दरकी
जनपद-मुरादाबाद।

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