श्रेष्ठ कक्षा के लक्षण

'राज्य शिक्षा संस्थान, प्रयागराज' में 'संस्कृत प्रशिक्षण' के दौरान निःसृत विचार जिन्होंने मुझे प्रभावित किया

* जब हम अपना धर्म नहीं छोड़ते तो संस्कृति क्यों छोड़ें?

* भाषा अधिगम में बोलने का अभ्यास सर्वप्रधान।

* बात सरल या कठिन की नहीं है, आप जो करेंगे/कहेंगे, वैसी ही बच्चे की आदत बनेगी।

* हर बच्चे को श्यामपट्ट तक लाइए, उसकी झिझक मिटाइए।

* संगीत, शब्द से पहले आता है।
बच्चे को कहानी से भी पहले लोरी सुनायी जाती है।
बच्चा शब्द से भी पहले गर्भ में हृदय की धड़कन सुनता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार रोते हुए बच्चे को दिल से लगाने पर वह जल्दी चुप हो जाता है।
अतः शिक्षा के आरंभ में संगीत, गायन, भाव-जागृति का विशेष महत्त्व है।


* (श्रेष्ठ कक्षा के लक्षण)
   मुख पर प्रसन्नता
   विमल दृष्टि
   विषय अनुराग
   मधुर वाणी

* जहाँ 'प्रदर्शन' वहाँ 'क्षुद्रता'
   जहाँ 'दर्शन' वहाँ 'उच्चता'

* (एक व्यक्ति)
पहले प्रश्न पूछता था तो खुद को अध्यापक कहता था क्योंकि गुरुजी को पढ़कर आना पढ़ता था।
जब अध्यापक बन गया तो खुद को विद्यार्थी कहने लगा क्योंकि अब खुद पढ़कर जाना पड़ता था।

* बच्चे को कभी-भी गलत उत्तर मत बताना।
कभी यह भी मत कहना कि मुझे नहीं आता (अहंकार के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि कहीं उसकी 'गुरुसमर्थ' भावना को ठेस न पहुँचे)

* जैसा करना है, वैसा
   करें'गे' नहीं,
   अभी, इसी समय से।

* लक्ष्य = अच्छा इंसान × (डॉक्टर/अध्यापक/...)

(प्रस्तुति : प्रशान्त अग्रवाल)

रचयिता
प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।

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