अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस

 नारी का त्याग, हर रीति रिवाज.....,

 मान्यताओं का बोझ, अजीब सोच.....।

 नियमों से बँधी महिलाएँ.............,

 आखिर कब तक.......?


 अनुमानित आँकड़े बताते हैं विधवा,

 विश्व में बारह करोड़ का है आधार।

 जिनमें से 8 करोड महिलाएँ,

 होती हैं शोषण का शिकार।


 पति की मौत का जिम्मेदार,

 पत्नी को क्यों ठहराते हो....?

 शुभ-अशुभ के बोझ तले...,

 क्यों जीवन नर्क बनाते हो...?


 पहाड़ जैसा जीवन ढोती,

 तिल-तिल करके मरती-रोती...।

 जिंदा कफन पहना कर के,

 लपेट कर उसको सफेद धोती।


 स्थिति को देखकर ऐसी,

 विधवा-विवाह अधिनियम बनाया था।

 अट्ठारह सौ छप्पन में समाज ने,

 ठोस कदम उठाया था।


 महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार,

 विधवाओं की स्थिति में हो सुधार।

 ब्रिटेन की लूंबा फाउंडेशन ने,

 चलाया था यह अभियान।


 विधवा जीवन स्तर सुधारना है,

 देश के विकास में योगदान देना है।

 किसी की मृत्यु में दोषी नहीं कोई,

 यह समझना और समझाना है।


 पति का मरना...  अशुभ है नारी,

 पत्नी का मरना.... अशुभ है कौन...?

 कैसे-कैसे नियम बनाए.............?

 और स्तब्ध सब हैं मौन..............?


                 आखिर कब तक.........?


रचयिता

बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।



Comments

  1. समाज की बुराई को दर्शाती रचना . बेहतरीन रचना

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