मैं हूँ बाल मजदूर

मैं हूँ एक बाल मजदूर,

रद्दी का ढेर उठाता हूँ।

कंधों पर बस्ता नहीं,

जीवन का बोझ उठाता हूँ।।


रंग-बिरंगे खिलौने खेलूँ,

मन मेरा भी करता है।

पर बेजान जिस्म के आगे,

भूखा पेट ही दिखता है।।


कभी माँ-बाप कभी मालिक,

स्वार्थ सिद्धि करवाता है।

पग-पग में मुझ जैसों का,

 बचपन रौंदा जाता है।।


सुबह-सुबह कोहरे में भी,

मैं रोज काम पर जाता हूँ।

जीवन सड़क पर गुजारूँ,

चैन की नींद न सोता हूँ।।


जीवन के हर पल में,

अपना सुख भी खोता हूँ।

खाकर डाँट धिक्कार मैं,

कभी भूखा भी सोता हूँ।।


कहाँ गए वह नियम कानून,

जो बाल श्रम निषेध करें।

किताबों में रह गए शायद,

इन पर अमल कौन करे।।


देश के ठेकेदारों सुन लो,

तरक्की देश की कैसे होगी।

कैसी बनेगी पहचान देश की,

जब तक यह मजबूरी होगी।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।







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