लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस

होनहार बिरवान के होत चीकने पात,

रानी लक्ष्मीबाई ने सिद्ध की यह बात,

बनारस के ब्राह्मण परिवार में लिया जन्म,

अंग्रेजों को जिसने दिखाई उनकी औकात।


माँ को खोया बचपन में, पिता ने पाला,

शिक्षा के साथ सीखा तीर तलवार चलाना,

बिठूर पेशवा ने प्यार से नाम दिया छबीली,

घुड़सवारी में इन्होंने जलवा दिखा डाला।


14 वर्ष की उम्र में झाँसी के राजा की बनी रानी,

 ब्रिटिशर्स को याद दिला दी इन्होंने नानी,

कैप्टन ह्ररोज ने अतुल्य साहस को किया सैल्यूट,

झाँसी को अंग्रेजों को न सौंपने की ठानी।


बेटे को पीठ पर बाँधकर युद्ध था अपनाया,

राज्य पर पड़ने ना दिया दुश्मनों का साया,

चकित थे सभी देखकर उनका रण- कौशल,

काना और मंदिरा सखियों ने भी साथ निभाया।


राष्ट्र की सुप्तप्राण चेतना को झकझोर दिया जिसने,

शौर्य और अदम्य साहस का परिचय दिया जिसने,

प्राणों की आहुति दी पर झुकना ना स्वीकार किया,

जीते जी अंग्रेजों का आधिपत्य ना माना जिसने।


ग्वालियर में अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया,

अल्पायु में विश्व में अपना नाम किया,

अठारह जून को अंतिम साँस ली लक्ष्मीबाई ने,

"बलिदान दिवस" रानी का हमने फिर नाम दिया।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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