पिता सब कुछ है

जीवन जीने के लिये जैसे चाहिए रोटी, कपड़ा, मकान।     

प्रत्येक के परिवार में जैसे माँ का होता है एक स्थान।         

वैसे ही परिवार में पिता है तो होता है अभिमान।                    

पिता है तो बढ़ जाता है बच्चों का स्वाभिमान।               


पिता है तो दूर भाग जाते हैं सब असुर।                           

पिता है तो पूर्ण नजर आते हैं सब सपने।                          पिता है तो अपना लगता सारा बाजार।                                 पिता ही तो होता है घर का पालनहार।  


पिता है तो प्रतिदिन घर में आते हैं उपहार।                   

पिता है तो माँ करती है सोलह श्रृंगार।                        

पिता है तो परिवार में खुशियाँ हैं अपार।                  

पिता ही तो होते हैं परिवार का आधार। 

                        

पिता बच्चों को सही राह हैं दिखाते।                          

पिता सभी के सुख दुख हैं बाँटते।                               

पिता है तो हर दिन हो जाता है त्योहार।                        

पिता से ही सम्पूर्ण होता हमारा परिवार।


रचयिता

शीतल सैनी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय धनोरा,

विकास खण्ड व जनपद-हापुड़।


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