पिता

जीवन की हर कठिनाई, 

हँसते-हँसते जो दूर करें।

जिनसे है आस-विश्वास,

हम सब उनको पिता कहें।।


बच्चों के दुखों का बोझ,

जीवन भर जो उठाए।

देते खुशियाँ लेते गम,

फिर भी सदैव मुस्कुराए।।


कर्ता-धर्ता घर के वो,

सबके हित का ध्यान रखें।

बनकर हौसलों की दीवार,

संघर्ष में सबके साथ खड़े।।


बच्चों के लिए उनके पिता,

कभी बन जाते हैं खिलौना।

सुंदर सपनों को दिखाने,

बन जाएँ कभी बिछौना।।


संतान रूपी पतंग की डोर,

उनके पापा होते हैं।

जीवन के अनुभव सिखाएँ,

त्याग का सागर होते हैं।।  


चरित्र उनका नारियल समान,

बाहर से सख्त अंदर नरम।

अपने धरती- आसमान को,

सम्मान दे रही है कलम।।🙏


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।

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