गरीब दिवस

गरीब का होता हर दिवस गरीब,

 भूख, लाचारी, गरीबी, अशिक्षा।

 बेबसी, मायूसी और उम्मीदें,

 यही तो है उसका नसीब......।


 बेबसी हर हाल में साथ.....,

 ना रहने को घर है मिलता।

 कड़कती धूप, ठिठुरती सर्दी...,

 नन्हा बचपन काँटों में खिलता।


 पसंद का कभी भोजन नहीं देखा,

 जीने के लिए अन्न खाना है।

 ना तन ढकने को कपड़ा, छत है...,

 पशु समान जीवन जीना है।


 पीढ़ियों से गरीब है जो...,

 वह आज भी गरीब है।

 विकास कई हुए समाज में,

 लेकिन वह आज भी बदनसीब है।


 योजनाएँ चलती हैं लाखों,

 क्या गरीब तक सब पहुँचती हैं..?

 गिद्ध, चील बैठे हैं राहों में,

 जो पहुँचने से पहले झपटती हैं।


 कुछ तो हालातों के गरीब है,

 और कुछ सोच के गरीब.... ।

 सोच ना बदले, तो हालात कैसे बदलेंगे..?

 यही है गरीब का नसीब.....।


 आवास, भोजन की योजनाओं के नाम पर,

 गरीब का निवाला मत छीनो।

 इंसानियत को जिंदा रखो,

 जीने का अधिकार मत छीनो।


 दया का दीप जलाना होगा,

 तब ज्ञान का दीपक जल उठेगा।

 नामुमकिन है तब भी बराबरी,

 गरीब की हालत कौन देखेगा...?

                  

रचयिता

बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।



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