विधवा-व्यथा

प्रस्तुत कविता में एक विधवा बड़ी बहन अपनी छोटी बहन से अपने मन की व्यथा कुछ ऐसे व्यक्त कर रही है....


सुन मेरी प्यारी छोटी बहना

तुझसे मुझको आज है कहना,

आशीष यही नव-विवाह का है,

तू सदा-सदा सुहागिन रहना...


क्या याद तुम्हें भी हैं वो सब,

बचपन के दिन आज़ादी के,

जब हम भी खेल खेलते थे

गुड्डे गुड़ियों की शादी के...


तुम भी तो मेरी गुड़िया थीं

दुनिया में सबसे प्यारी-सी,

सपने देखे थे मैंने ये

करूँगी सब तैयारी भी...


सजाउँगी सँवारूँगी 

तुमको हाथों से अपने,

हल्दी उबटन मेहंदी कुमकुम 

देखे थे बस ये सपने...


कुछ कर न सकी मैं ये सब तो

तू माफी मुझको दे दे,

हाथों में बेड़ी समाज की

इससे मुक्ति कोई दे...


कुछ कहते मैं अपशकुनी हूँ

कुछ कहते मुझको डायन,

कुछ कहते कि अछूत हूँ मैं

कुछ कहते मुझे अभागन...


कोई बतला दे कि कौन हूँ मैं

गलती इसमें मेरी क्या,

नियति में जो कुछ भी लिखा

होकर तो वही रहेगा...


जीवन का दुख है मुझे मिला

उसपे भी इतने ताने!!

क्या खत्म होंगे ये हृदयभेदी से

रीति रिवाज़ पुराने??


रचयिता
खुशबू गुप्ता,
सहायक अध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय भदोई,
विकास खण्ड-सरोजनी नगर,
जनपद-लखनऊ।

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