स्त्री

अंगारों पर अडिग कदमों को रखकर
संघर्षों से तपकर बनी मूरत हूँ मैं .....
चट्टानों सी मजबूत, दृढ़ निश्चयी होकर
बेजान नही, कोमल हदय हूँ मैं ......
मासूम रूदन से विचलित हो जाऊँ
ममता की निश्छल सागर हूँ मैं .....
संतों की वाणी, ग्रन्थों की जुबानी
कर्म-पथ की वास्तविक ज्ञाता हूँ मैं ....
घनघोर अंधेरी रात्रि में भी निडर
उगते सूरज की अभिलाषा हूँ मैं ......
खुले नभ में विचरण को आतुर
मनमोहक स्वच्छंद खग-गतिगामिनी हूँ मैं .....
मिटटी के अस्तित्व से परिचित
मजबूत जड़ों की स्वामिनी हूँ मैं ......
छल, फरेब, दंश में  अरूचिकर
आशा की निर्मल ज्योति हूँ मैं .....
स्वप्नलोक से स्वर्णिम सपनों को चुनकर
वास्तविकता में तराशती, रचती सर्जनकर्ता हूँ मैं ....
विश्वास, प्यार, स्वाभिमान से मिश्रित
पूर्ण स्त्री की अपरिभाषित परिभाषा हूँ मैं .......
अँगारों पर अडिग कदमों को रखकर
संघर्षों से तपकर बनी मूरत हूँ मैं .......

रचयिता
कोमल त्यागी,
सहायक अध्यापक,
आदर्श प्राथमिक विद्यालय(अंग्रेजी माधयम) ट्याला,
जनपद-हापुड़।

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