मर्दानी

"एक ही रानी लक्ष्मीबाई यहाँ नहीं दुश्मनों  संग लड़ती है,
भूख, प्यास, बेरोजगारी संग तो रोज़ ही बलिवेदी सजती है।
समर क्षेत्र में तो रोज यहाँ हर मर्दानी लड़ती है।
दो जून की रोटी खातिर वो तो सब कुछ करती है।
बेटे को पीठ पर दे सहारा वह दुर्गा आगे चलती है,
धर रूप काली का वह तो काल का खण्डन करती है।
तलवार पुरानी हो गयी पर भुजाओं मे बल रखती है,
काट शीश असंभावनाओं का वह तो आगे बढ़ती है।
विपरीत है परिस्थितियाँ पर वह मर्यादा रखती है,
इस तरह मर्दानी माँ का फर्ज भी पूरा करती है।"

रचयिता
अभिषेक शुक्ला,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लदपुरा,
विकास क्षेत्र-अमरिया,
जिला-पीलीभीत।
मो.न.9450375290

Comments

Total Pageviews