'रास' 'रस' 'रसराज'

शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर

सूरज ने सिन्दूर बिखेरा
अरुणिम बेला साँझ की
गैयां लौटीं, सूरज डूबा
आयी बारी चाँद की

निर्मल यमुना का जल शीतल
शीतल छाँव कदम्ब की
मंद पवन के झोंके शीतल
शीतल किरणें चन्द्र की

मधुर कृष्ण की मधुर बाँसुरी
छेड़े मीठी रागिनी
मधुर प्रेम की मूरत सखियाँ
दौड़ चलीं बड़भागिनी

रस में डूबा रास मनोहर
रस में भीगी रात है
रस में डूबे प्रेमी सारे
रस ही रस का राज है

रचनाकार
प्रशान्त अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
ज़िला-बरेली (उ.प्र.)

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