खेती महके

खेती महके यहाँ पे खेती महके
देखो जाग उठा किसान
यहाँ पे खेती महके
गाता गीत सदा धरती के
धरती का भगवान
लू, सर्दी को दिन भर सहता
भारत का किसान
देखो भरे हैं खलिहान
यहाँ पे खेती महके
वृक्ष हमारे ईश्वर अल्लाह
सोच बने जन-जन की
मोक्षदायिनी यमुना गंगा
से पावन यह धरती
आया स्वच्छ भारत अभियान
यहाँ सफाई करके
खेती महके यहाँ पे खेती महके
देखो जाग उठा किसान
यहाँ पे खेती महके
आज हमारे जन मानस में
प्रगति दुंदुभि बाजे
फिर से नंदन वन मधुबन हो
बिखेरे रवि के पंजे
लेके हरित का निशान
यहाँ वृक्षारोपण करके
खेती महके यहाँ पे खेती महके
देखो जाग उठा किसान
यहाँ पे खेती महके

रचयिता
अनुरंजना सिंह,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कोठिलिहाई,
जनपद-चित्रकूट।

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