माँ भगवती मन निर्मल कर दे

"शक्ति स्वरूपा माँ भगवती मन निर्मल कर दे"
देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का प्रादुर्भाव नारी शक्ति अर्थात् 'देवी' द्वारा ही सम्भव हुआ है। माँ भगवती सकारात्मक ऊर्जा की अक्षय भंडार हैं। उनके स्मरण मात्र से ही आलस्य, जड़ता व नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। उनका दिव्य व आलौकिक सौंदर्य हमारे मन को जीवनी शक्ति की ओर ले जाता है।
     हम इन दिनों 'नवरात्रि' में माँ भगवती से प्राप्त शक्ति, ऊर्जा व ज्ञान के संचयन में लिप्त हैं। हर ओर भक्ति व ऋद्धा की लहरें मन को आप्लावित कर रही हैं।
 पर सवाल यह उठता है कि क्या हम नारी को शक्ति मानकर सिर्फ नौ दिन तक ही उसका पूजन-अर्चन करें????

जिस कुमारी को हम आदि शक्ति का रूप मानकर पूज रहे हैं 'नवरात्रि' के पश्चात उस शक्ति का ही शोषण करते हैं.... या करते हुए देखते हैं। जिस देश में जहाँ एक ओर उसे शक्ति मानकर पूजन-अर्चन करते हैं। वहीं दूसरी ओर घरेलू हिंसा, भ्रूण हत्या, यौन शोषण व बलात्कार जैसे कुत्सित कार्य भी उसके तन और मन को विदीर्ण किए जाते हैं।

   क्या.. हमारे आचरण और आवरण में अंतर नहीं है????
 जिस शक्ति स्वरूपा की वंदना.. अर्चना 
    उसी शक्ति से उदभूत दूसरी शक्ति को कामालू दृष्टि से देखने का अर्थ है कि जिसे हम माँ मान रहे थे, वह क्या मात्र दिखावा है???
  जैसे एक दीपक की जोत से प्रव्रतित दूसरे दीपक को हम  उतना ही पूज्य मानें जितना पहला दीपक था तो निश्चय ही हमारे  मन की निर्मलता निखरेगी।
अतः इस नवरात्रि के पावन पर्व पर हम यह व्रत लें कि  हम नारी शक्ति का सम्मान करेंगें। उसे पूज्य मानेंगे।
न सामाजिक अपराधों में लिप्त रहेंगे न ही दूसरों को लिप्त होने देंगे ।
  सही मायनों में तभी हम नवरात्रि का पावन पर्व सार्थक होगा।
  शक्ति स्वरूपे माँ जगदम्बे तेरा वन्दन है,
मन के सात्विक सौम्य भाव से शुभ अभिनंदन है।"

लेखिका
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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