मगरमच्छ का विश्वासघात
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
पत्नी उसकी बंदर की थी,
भाभी सुंदर प्यारी।
तोड़ के जामुन देता बंदर,
मगरमच्छ था खाता।
बची हुई जामुन को लेकर,
अपने घर को जाता।
यह सिलसिला वर्षों से था,
इसी तरह से जारी।
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
मगरमच्छ की पत्नी बोली,
सुनो जी मेरी बात।
कहाँ से लाये थे फल काले,
खाये थे जो रात।
मगरमच्छ को पत्नी अपनी,
प्राणों से थी प्यारी।
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
मगरमच्छ बोला खुश होकर,
मित्र मेरा है देता।
बदले में वह मेरी पीठ पर,
बैठ सैर कर लेता।
लदे हुए हैं उस जामुन पर,
फल के गुच्छे भारी।
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
पत्नी बोली मित्र को अपने,
कल तुम लेकर आना।
मुझे कलेजा उसका मीठा,
अपना आहार बनाना।
बीच धार में हँसकर उसने,
बात बता दी सारी।
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
बंदर बोला मगरमच्छ तुम,
झटपट चलो किनारे।
मेरा कलेजा टँगा हुआ है,
डाली के एक सहारे।
जान चुका था मगरमच्छ की,
बंदर सब गद्दारी।
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
मूर्ख मगरमच्छ अब मुड़कर,
तीर नदी के आया।
बंदर ने फौरन पीठ से उसके,
एक छलाँग लगाया।
विश्वासघात ने तोड़ दी थी,
उन दोनों की यारी।
नदी किनारे मगरमच्छ की,
बंदर से थी यारी।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
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