मित्र धर्म
तेज नदी की धारा में थी,
चींटी बहती जाती।
कोई उसकी जान बचाये,
चींटी आस लगाती।
नदी किनारे एक कबूतर,
डाली पर था सोता।
नींद खुली तो नीचे देखा,
चींटी को उसने रोता।
मर जाएगी चींटी जल में,
यह चिंता उसे सताती।
तेज नदी की धारा में थी,
चींटी बहती जाती।
तोड़ा उसने पेड़ से पत्ता,
और गिराया जल में।
बहते-बहते चींटी के पास,
पहुँच गया वह पल में।
बैठ के चींटी उस पत्ते पर,
नदी किनारे आती।
तेज नदी की धारा में थी,
चींटी बहती जाती।
एक बहेलिया नदी किनारे,
गोंद-छड़ी ले आया।
गोंद लगाकर छड़ी पेड़ के,
ऊपर तक पहुँचाया।
फौरन चींटी पैर में उसके,
काट भाग है जाती।
तेज नदी की धारा में थी,
चींटी बहती जाती।
भगा बहेलिया छोड़ छड़ी,
दर्द से था बेहाल।
मित्र धर्म का पालन करके,
चींटी थी खुशहाल।
परोपकार की एक भावना,
कविता यह सिखलाती।
तेज नदी की धारा में थी,
चींटी बहती जाती।
कोई उसकी जान बचाये,
चींटी आस लगाती।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
Very nice
ReplyDelete